Tuesday, June 14, 2011

तमन्ना...बेखयाल!



दिल  की  हर  तमन्ना  बेखयाल 
हर  चाहत  कही  खो  गयी  है 
आज  बारिश  भी  जैसे  रो  रही  है 
किसी  की  आहट से  इतनी  घबराहट  क्यों ,
की  लब सिले , आँखे  भी  नम है 
होश नाम  का  भी  नहीं 
और  फिर  वही  मदहोशी  है 
वही  गुमनाम  अँधेरे 
वही  बेपनाह  सवेरे…

बड़ी  शिद्दत  के  बाद  जीना  सीखा  था 
झूठा  ही  सही , हसना  सीखा  था 
कही   किसी  कोने  में  दिल  के,  यादे दफनाये 
एक  बार  फिर  से  खुलना  सीखा  था 
है  शिकायते  इतनी  की  गिनती  भूल  गए  है 
है  दर्द  इतना  सीने  में  की  आदत  सी  पड़  गयी  है 

जो  कभी  हम  जीते  थे  किसी  के  लिए ….
आज  मरने  को  जी  रहे  है 
और  मौत  भी  आज  मुस्कुरा  कर 
दामन  छुड़ा  चली  हैं …

क्यों  क़ैद  हूँ  इस  भवर  में 
क्यों  क़ैद  हूँ  दुनिया  की  नज़र  में 
जब  बचे  ही  नहीं  कोई  सपने , फिर 
क्यों  क़ैद  हूँ  उन  टुकड़ो  में …

आज  नजाने  क्यों  हकीक़त  से  रूबरू  हूँ 
जो  दौड़  रहा  है  नस  नस  में , उस  दर्द  से  वाकिफ  हूँ 
गिले  शिकवे  नहीं  है  मुझे  उस  से  कही 
बस  खुद  ही  की  नज़र  में  नाकाबिल  हूँ ….

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