Saturday, October 9, 2010

कहते है खुदा भी आसमान से
कभी कभी नीचे उतर आता है
और आकर इस धरा पर
अपने नए रूप दिखता है
कहते है की वो यहाँ आकर
दुःख हरता, सुख फैलाता है
नए पौधे सीचता, और पेड़ो की
छाव बढ़ता है
कहते है... की दुनिया में नए रंग भरता है
कुदरत को नयी रीत सिखाता है
जो कभी ना किया गया हो...वैसे
चमत्कार कर दिखता है....

पर ऐसा होता तो नहीं है... 

जो ऐसा होता तो हर फुल हँसता,
खिलखिलाता, कभी भी ना मुरझाता...
हर पेड़ अपनी जड़े बढ़ता, कभी ना झरता,
कभी ना गिरता....
सूरज का ताप हमेशा सामान रहता...
और सामान रहती चाँद की ठंडक... 
समुन्दर में ना त्सुनामी आता... 
ना नदियों में बाढ़...

फिर क्यों ऐसा कहते है... 
की इश्वर धरती पे आते है...
दुःख हरते है... सुख बढ़ाते है....????

4 comments:

संजय भास्‍कर said...

सुंदर प्रस्तुति....

नवरात्रि की आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।जय माता दी ।

संजय भास्‍कर said...

कविता का अन्त लाजवाब् है और मन को मोह लेता है ।

Sunil Kumar said...

सुंदर अभिव्यक्ति , बधाई

Madhu said...

Thanks Sunil and Sanjay :)