कभी कभी नीचे उतर आता है
और आकर इस धरा पर
अपने नए रूप दिखता है
कहते है की वो यहाँ आकर
दुःख हरता, सुख फैलाता है
नए पौधे सीचता, और पेड़ो की
छाव बढ़ता है
कहते है... की दुनिया में नए रंग भरता है
कुदरत को नयी रीत सिखाता है
जो कभी ना किया गया हो...वैसे
चमत्कार कर दिखता है....
पर ऐसा होता तो नहीं है...
जो ऐसा होता तो हर फुल हँसता,
खिलखिलाता, कभी भी ना मुरझाता...
हर पेड़ अपनी जड़े बढ़ता, कभी ना झरता,
कभी ना गिरता....
सूरज का ताप हमेशा सामान रहता...
और सामान रहती चाँद की ठंडक...
समुन्दर में ना त्सुनामी आता...
ना नदियों में बाढ़...
फिर क्यों ऐसा कहते है...
की इश्वर धरती पे आते है...
दुःख हरते है... सुख बढ़ाते है....????
4 comments:
सुंदर प्रस्तुति....
नवरात्रि की आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।जय माता दी ।
कविता का अन्त लाजवाब् है और मन को मोह लेता है ।
सुंदर अभिव्यक्ति , बधाई
Thanks Sunil and Sanjay :)
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